जो खुश हैं बर्बाद कर घर मेरा ख़ुदा उनकी खैर करे जुल्म किया है जिसने मेरी रूह पर ख़ुदा उनकी खैर करे ना कर पाये वो मोहब्बत और ना दोस्ती ही ख़ुदा उनकी खैर करे अपने फैसलों का कसूर दिया मुझे ही ख़ुदा उनकी खैर करे वो जो दौलत के शीशे में खुद को देखContinue reading “ख़ुदा उनकी खैर करे”
Category Archives: अभिव्यक्ति
वो चाँद
वो जो चाँद बिखरा है मेरे बिस्तर पर क्या वही है जो चमकता है रात भर आकाश में या अमावस को ले छुट्टी छोटी सी आया है मिलने मुझसे मेरे घर पर वो जो चाँद सिमटा है मेरे बिस्तर पर क्या वही है जो बदलता है पहला सा हो जाने को या है वो देवता Continue reading “वो चाँद”
सुन्दर फूल
फूल सुन्दर होते हैंमैंने भी लगाया था एक पौधाजिसमें फूल खिलते हैंहर एक नया खिलता पत्ताकली की आशा जगाता थामिटटी,खाद,पानी के साथनयन-प्रेम से उसको सींचा थाआशा में उस फूल कीरंग सपनों में कई आये थेफिर एक दिन एक कली खिलीछुपाये सुन्दरता का भण्डारमेरे नीरस मन में कियाजिसने नव-आशा का संचारफिर कली फूल बनने लगीजैसे मैंने हीContinue reading “सुन्दर फूल”
मेरा जीवन तो पहले से निर्धारित था
मेरा जीवन तो पहले से निर्धारित थामैंने ही छेड़-छाड़ कीबाधित कर अविरल प्रवाहमध्यम वर्गी विचारों काजो थे उद्भवित मेरे मध्यम अस्तित्व सेचेष्टा कीकरने को आलिंगन नवीनसमाहित थे अपरोक्ष जिनमेंकुछ सुविचार प्राचीनप्रशंसित ना हुए मेरे प्रयासक्योंकि थे प्रतिकूलसमाज की सामान्यतः संरचना केजहाँ पर उच्चतम निर्णयउच्चतर स्तर पर ही लिये जाते हैंमध्यम अस्तित्व से मैंनेइस नियम की अवहेलनाContinue reading “मेरा जीवन तो पहले से निर्धारित था”
इत्तेफ़ाकन वो दिन याद आया आज
इत्तेफ़ाकन वो दिन याद आया आज जब चाय की चुस्कियां मैं बिन पिये ले लेता था आज भी पीते हैं मेरे जानने वाले पर इस महफ़िल में वो बेतकल्लुफ़ी कहाँ बेहिचक कन्धों पर दोस्तों के रख देता था सिर अब ज़िन्दगी में वो बेतकल्लुफ़ी कहाँ अलग निशाँ ढूढनें को चल पड़े सब वो जो कल थाContinue reading “इत्तेफ़ाकन वो दिन याद आया आज”
नुमाइश प्यार की अपनी यहाँ मैं कर नहीं सकता
नुमाइश प्यार की अपनी यहाँ मैं कर नहीं सकतामैं सुन सकता हूँ तुमको लेकिन पढ़ नहीं सकतावो रुसवा हो के जिसके संग तुम खुश सी रहती होहंसा सकता है,पर आंसूँ तुम्हारे पी नहीं सकता नशा बदगुमानी का अभी तुम पर तो भारी हैख़ता इसमें नहीं तुम्हारी,सब ग़लती हमारी हैये शिकवे आज मैं जो ज़माने से करता हूँतुम्हे ऐसाContinue reading “नुमाइश प्यार की अपनी यहाँ मैं कर नहीं सकता”
जल पैरों में फोड़े और बिवाई भी देता है
अख़बार में “”जल-सत्याग्रह ” करतेवृद्ध कृषकों और ग्राम निवासियों के पैर देखे।वो ऐसे तो न थे जिन्हें देख कर उन्हें ज़मीन पर रखने से मना कर दूं।लेकिन मन ग्लानि ,व्यथा और निस्सहयता से भर गया कि क्या यही जनतंत्र है?अगर मतों की समानता देखी जाए तो ,मेरे और उन वृद्धों के चुनावी मत में कोई अंतर नहीं हैContinue reading “जल पैरों में फोड़े और बिवाई भी देता है”
रंग
इत्तेफाक़न वो रंग कुछ इस तरह आँखों में बसा और सभी रंग बेरंग हो गए कुछ इस तरह रंगा मैंने तुम्हे रंगरेज़ बन कर मेरे सामने ही तुम्हारे हाथ पीले हो गए इतनी मसरूफियत थी ज़िन्दगी में की तेरे रंग को ही जहान बना डाला आज शीशे हैं मेरी आँखों के सफ़ेद मुझे छोड़ मेरे यार तुमContinue reading “रंग”
व्यवासायिक प्रेम
उस चौराहे की बेंच आज भी वैसी है बस उम्र के कुछ साल और बढ़ गए वहां झुकी डाल आज भी वैसी है बस गिरने वाले फूल कम पड़ गए वो पत्थर का पटरा जिस पर हम बैठे थे आज भी वैसा है फिर बदला क्या है? कहने को कुछ भी नहीं सोचो तो बहुत कुछ वो वक़्तContinue reading “व्यवासायिक प्रेम”
सख्त दरवाज़े
सख्त दरवाज़े थे मेरे भी घर के पर वक़्त के साथ खुल गए वो जो कालिख़ लगी है कुण्डी पे और जो दरारे हैं पल्लों पे असर है उस आग का जो सालों पहले मैंने लगाईं थी जो निशान था मेरे हाथ पे सर्जरी से उसे दिल पर लगवा लिया था तब से घर के सारेContinue reading “सख्त दरवाज़े”