मैं पुराना ही अच्छा था शायदतब कोई भी बात मुझेपरेशान नहीं करती थी,और अब,सफ़ेद शर्ट पर थोड़ा सा छींटाकर देता है परेशान मुझे। मैं पुराना ही अच्छा था शायदतब न कोई मुंसिफ़ था औरन ही कोई वक़ील,और अब,एक छोटी सी बात भीबड़ी लम्बी बहस बन जाती है। मैं पुराना ही अच्छा था शायदतब बिना बात हँसी भीनाContinue reading “मैं पुराना ही अच्छा था शायद”
Category Archives: अभिव्यक्ति
दीवार पर लगा पेण्ट
मेरी दीवार पर लगा पेण्टउधड़ गया हैलगता है कोई भिखारीअकड़ गया है। ओ. एम. आर. के काले गोलेबढ़ रहे हैंप्रतियोगी होकर छात्र कोठरी मेंसड़ रहे हैं। एक और व्रत रखा माँ नेमेरे नाम काबेटा अगर रहा निकम्मातो फिर किस काम का। -प्रशान्त
बड़ी दूर हमारी बात चली
अल-सुबह हमारी रात चलीबड़ी दूर हमारी बात चली देख गेसू के निशाँ तकिये परआँखों से बरसात चली एक कतरा तुम्हारी साँसों कामेरी यादों की बारात चली महक दिल पर तुम्हारी बातों कीफिर कोई न मेरी बात चली वो उछला तुम्हारा जो किस्सामेरी न कोई बात चली भर के रखे यादों के गुच्छे मैंनेघर तेरे न मेरीContinue reading “बड़ी दूर हमारी बात चली”
चलो इश्क़ महकायें
चलो इश्क़ महकायें उस ख़ुशबू की तरह न बंद हो जो बोतल में बस ठहर जाये उस लम्हे की तरह जो रहेगा आज और कल एक सा तुम्हारी-मेरी तरह। इत्तेफ़ाकन खो भी जाये इश्क़ कभी पहचान लें हम उसको जैसे पुरानी डायरी में दबी लाइन महक रही है जो मोहब्बत से इतने सालों बाद भी Continue reading “चलो इश्क़ महकायें”
रिश्ता
रिश्ता ऐसा होजो बहे तोजम जायेजैसे ख़ून का थक्का,जो हो जाता हैलाल से कत्थईऔर फिर कालाठीक,तुम्हारे दिल तरह। -प्रशान्त
सिरहाने रखा ख़्वाब
सिरहाने रखा ख़्वाब जब तक पूरा ना हो जायेतब नींद आये भी तो क्यों आयेजलना है मुझे अभी खुद में हीनज़र किसी को आये या न आये। मोहब्बत की तो जरूरी नहीं तुम्हें भी मिल जायेसुन सको तो सुन लो जब होंठ सिल जायेंबोलना है मुझे अब सब ख़ुद से हीमहफ़िल में मेरी कोई आये याContinue reading “सिरहाने रखा ख़्वाब”
अब भी तेरे इंतज़ार में बैठे हैं
जो धड़क उठे वो दिल ही क्याहम तेरी आरज़ू में बेहाल बैठे हैंसुन्न सब अब कुछ लगता नहींअब भी तेरे इंतज़ार में बैठे हैं परस्तिश तुम्हारी नूरी निगाहों कीमोहब्बत थी मुरव्वत नहींचुप रहना नहीं बेशिकवा होनासारे मुंसिफ़ क्यों चुप बैठे हैं आशिकी का करम है येजीना भी एक अदा बन जाती हैजी लिया हमने भी जैसे तैसेऐ क़ज़ाContinue reading “अब भी तेरे इंतज़ार में बैठे हैं”
तू सो जा गुडिया
हर उस बेटी के लिये जो अपने सपनों को जीने के लिये अपनी माँ और अपने घर से दूर है। छोटी सी गुड़िया प्यारी सी गुडिया बंद कर के मुट्ठी में चंदा की पुड़िया सपनों के आँगन में दूर घर से फिर भी ममता के आँचल में तू सो जा तू सो जा तुझे जगनाContinue reading “तू सो जा गुडिया”
संघर्ष
इलाहाबाद के छोटे कमरों में बड़े सपनों के साथ रहने वाले कई छात्रों के दुरूह जीवन को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न इन पंक्तियों द्वारा करने का प्रयास किया है। आलोचना एवं टिप्पणियां आमंत्रित हैं। कल, बाद आधी रात के जब सब कुछ सोया-सोया था, तो जग रहीं थी बस मेरी आँखें हरहराता कूलर, और उसकी हवाContinue reading “संघर्ष”
बहुत दिनों से
बहुत दिनों सेमैंने देखा नहीं तुमकोऔर ना हीसुनी तुम्हारी आवाज़पर,एक छाया धुंधली सीहै रेखांकित कहीं मन मेंजिसमें दिख तो नहीं रहीपर खुल के खिलखिला रही हो तुम। नहीं है उस छवि मेंउत्तेजना का आवेगऔर ना हैगर्मी प्रतिस्पर्धा की,वो जो संचित है छवि तुम्हारीचेहरा दिखता नहीं तुम्हारापर है उसमें आभा शीतलता की। क्यों आवश्यक है?सृजन किसी सम्बन्ध कानिजताContinue reading “बहुत दिनों से”