उलझन

इमारतें, कुर्सियां जिंदा हो जातीं हैं जब उन पर इंसान बैठते हैं दिमाग सन्नाटे से भीड़ में आता है जब कहीं विचार उबलते हैं  इश्क वही सच्चा है  जो आग को बुझने ना दे कर मायूस न कभी  और मंज़िल से पहले रुकने ना दे कमरों में कब तक चलेगी लफ्फाज़ी घूमते रहेंगे कब तकContinue reading “उलझन”

कुछ पल

कुछ पल के बस ये दिन हैं कुछ दिन की बस ये बात है फिर समाँ बदल जाएगा बेफिक्री के इस जहाँ में फ़िक्र का बादल आएगा कुछ पल के बस ये दिन है  वो शरारतें याद आएँगी बिन बात हँसना याद आएगा वो डाटें याद आएँगी यारों संग बीता वक़्त याद आएगा मस्ती की सुबहContinue reading “कुछ पल”

हे प्रेम

Valentine’s Day (प्रेम दिवस) पर “प्रेम” को मेरी श्रद्धांजलि!!! हे प्रेम!! कहाँ तुम छुप गए क्यों दुबके हो तुम दिखावे के छोटे वस्त्रो में क्या इतनी आती है तुम्हे शर्म मत शरमाओ कुछ यूं फैलो  कि समा लो स्वयं में उन “दो” चकवा चकवी को जिनकी आत्माएं  शरीर के बंधन तोड़  एक हो चुकी हैंContinue reading “हे प्रेम”

हम वहां हो

आप मुस्कुराएँ और हम वहां हों सारे आलम हो हुस्न के और हम वहां हों नहीं तमन्ना हमें ताज महल की छोटा सा घर हो आपका और हम वहां हों पतझड़ में गिरी पत्ती फंसी हो बालो में उसको हटाने के लिए बस हम वहां हों किताबों से थक जब आँखें आराम करें उन पर से चश्मा हटाने को हमContinue reading “हम वहां हो”

मेरा ज़िक्र

मेरा ज़िक्र कहीं किया न करो ये मुमकिन है  तुम्हारी बातों से मुझे कोई चुरा न ले क्या ज़रूरत मुझे दुनिया के परदे पर लाने की कहीं ऐसा न हो  तुम रहो यहीं पर और मुझे कोई चुरा ले बेशक! इंतज़ार है मुश्किल  पर है हकीकत भी वस्ल में चिलमन का अलग है मज़ा इसेContinue reading “मेरा ज़िक्र”

Dimensions of Justice in India post Dr. Binayak Sen Judgment

This write-up is ‘a priori’ response of a law student to the existing distressing circumstances, with no intent whatsoever of showing any solidarity with any ideology or organisation or malice towards anyone. The Constitution of India opens with a Preamble which assures “Justice- social, economic and political” to “We, the people.” Justice is the crowning glory of allContinue reading “Dimensions of Justice in India post Dr. Binayak Sen Judgment”

a NEW perspective

Novelty infuses enthusiasm in a nondescript life. An urge to do something new accompanies occurrence of a new phenomenon. Recently, we witnessed the advent of a new year and a new decade. The past decade started with a lot of buzz – the Y2K syndrome, a new century, a new millennium, a harbinger of the giant leap ofContinue reading “a NEW perspective”

मिट्टी की तलाश में

मन में जो आया बस उसे लिख रहा हूँ… पता नहीं ये कविता है कि नहीं!! ना ये पता है कि ये साहित्य किसी भी वर्ग में स्थान पाने के लायक भी है या नहीं.. परन्तु इसका पूर्ण विश्वास और संतोष है कि ये रचना एक सच्ची हार्दिक अनुभूति का प्रतिफल है!! रात को चमकती लाइटContinue reading “मिट्टी की तलाश में”

बहुत रंजिश है

बहुत रंजिश है तेरे शहर में ऐ दोस्त मगर है सुकूनउसमे ईमान अब तलक बाकी हैक्या बयान करूँ हाल अपने शहर काहमारी आस्तीनों में पलते यहाँ सांप बहुत हैं पर ये न समझना कि तुम्हारे यहाँ सब ठीक हैईमान डिगते अब देर नहीं लगतीचाहे किसी का भी हो वोतलवारें तो बस खून की प्यासी हैं आजContinue reading “बहुत रंजिश है”

अच्छा होता

मेरी कल्पना सत्य हो जाती तो अच्छा होता मनुष्य मनुष्यता सीख लेता तो अच्छा होता  भावनाएं ह्रदय से निकलती तो अच्छा होता प्रेम प्रदर्शनी न बनता तो अच्छा होता बातें मुंह पर होती तो अच्छा होता प्रकृति दुही ना जाती तो शायद अच्छा होता मित्रता व्यवसाय न बनती तो अच्छा होता शिक्षा ज्ञान देती तो अच्छाContinue reading “अच्छा होता”