असन्तोष

उम्र के साथ
फैलता जाता है बरगद
ताड़ ऊँचा होता जाता है;
शहर में दो बड़े आदमी हैं
एक की जड़ों का अंत नहीं
दूसरा अकेले हवा खाता है;
मिडल क्लास हो किंकर्तव्यविमूढ़
लटका है त्रिशंकु सा
इन दोनों के बीच;
झूठी हँसी के साथ
ऊँचे नीचे बैठे हैं सब
सुविधा के गलियारों में;
दिखें जैसे भी बाहर से
सच यही है-
तीनों असन्तुष्ट हैं।

– अशान्त

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