शेखर के मन की बात उस दौर में जब सोचना ज़रूरी है। प्रेम की कोई परिभाषा तो होती नहीं , मन की एक सोच है, वही सोच साझा कर रहा हूँ…..
अन्वरसिटी में जो मैं पिट जाऊँ,
तुम दनादन्न विडियो लाना,
फेसबुक पर डाल डाल,
नक्सल अर्बन तुम बन जाना,
मैं ग्राउंड वर्क सम्भालूंगी,
तुम सोशल मिडिया सम्भालना,
जो चीखे कोई फेक न्यूज,
सब फेक फाक बस चढ़ जाना,
मैं नये नये नारे गाऊँ,
तुम संशोधन सब पढ़ लेना
मैं आंसू गैस को झेलूंगी,
तुम संविधान बचा लेना,
मैं देशप्रेम दिखा दूंगी,
परिभाषा तुम बतला देना-
उनको जो द्रोही मुझे कहें,
सद्बुद्धि उनको दे देना,
हम हेट स्पीच की दुनिया में,
फ्री स्पीच के जैसा प्रेम करें,
लाठी गाली की दीवारों में,
हम अपना फोटो फ्रेम करें।
-शेखर