इन्सान बदलें तो चलता है
क्यों बदल जाते हैं शहर?
बदला हुआ शहर बदल देता है
उन यादों को
जिन्हें उड़ाया था धुँए में हमने
नाचने को उसी आबो हवा में
जिसमें मैं पैदा हुआ
और मर जाना चाहता हूँ;
बड़ा अजीब हाल है अब
नयी कहानियों वाले मेरे शहर की
हवा अब बासी हो गयी है
जहाँ नाचते थे हम
उन कोनों में उदासी हो गयी है।
बदले हुये गोल चौराहों पर
मैं गोल घूम रहा हूँ
शायद तुम्हारे अक्खड़पन में
मैं खुद को-
मैं अपना खोया शहर ढूंढ़ रहा हूँ।
– अशान्त