जब तक तुम थे प्रेम संगीत था,
तुम्हारे जाने के बाद
सुर हैं
स्वर हैं
ताल है, पर
संगीत नहीं है;
कहीं दब गया है भीतर प्रेम भी-
सब बहुत प्रैक्टिकल है।
सुना है तुम अब दूसरे कमरे में रहते हो
वहाँ और लोग हैं तुम्हारे साथ
क्या बचा है वहाँ मेरा स्पर्श?
क्या बचा है वहाँ मेरा अस्तित्व?
रस्में बहुत मजबूत होती हैं
तुम्हारा बदला रूप असर है उन रस्मों का
जिनसे पाने को संरक्षण
तुम चले गये।
बस इतनी आशा है
जो मिल कर गाया था गीत हमने
आयेगा तुम्हें याद
जब बालों पर सफेद स्याही
चेहरे पर लकीरें होंगी,
तुम्हारे स्वर मेरे बोल
शायद कुछ असर करें
लगा लो तुम मुझे गले पहली बार
जीवंत हो क्षण भर के लिये
हमारा संगीत;
क्योंकि तुम्हारे जाने के बाद
जीवन में प्रेम संगीत नहीं है।
– अशान्त