अपना शहर

अपने लिये कुछ भी नहीं छोड़ रहा
मैं अपने ही शहर में

सब से मिल कर खुद को खोज रहा
मैं अपने ही शहर में

बरगद पर लिपटी यादें देख रहा
मैं अपने ही शहर में

पुरानी किताबों में नयी कहानी ढूँढ़ रहा
मैं अपने ही शहर में

दीवारों पर तुम्हारी उंगलियाँ मैं छू रहा
मैं अपने ही शहर में

ठहरे जीवन के चंचल बचपन में बह रहा
मैं अपने ही शहर में

तुम्हारे लिये छोड़ रहा-बातें, यादें, प्यार
मैं अपने ही शहर में

– अशान्त 

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