हमको ज़रा बता दो

बरस सके जो तुम पर वो बादल कहाँ बता दो
कहाँ भेजे तेरी तस्वीरें वो पता कहाँ बता दो

वो छुअन तुम्हारे गालों की अटकी है दिल में
जहाँ जाकर भूल जाये वो जगह ज़रा बता दो

गा लेते जो तुमको मौसिक़ी वो मिली ही नहीं
कैसे गुनगुनाये तुमको तरीका कोई बता दो

ख़ुशक़िस्मत हैं वो हबीब जो बैठे हैं तेरे क़रीब
मिली जिनको फुरकत उनकी ख़ता बता दो

वादे किये हैं तुमने बहुतों से की मोहब्बत
कुछ ख़ास जो हो हम में हमको ज़रा बता दो

ग़ाफ़िल है दुनिया जिस पे वो तबस्सुम तुम्हारी
सच्ची हैं या झूठी ज़रा अपनों को तो बता दो

जो चमकता है तुम में रसूख़ हमारी आशिक़ी का
उसे तुम्हारा करम समझते हैं उनको भी बता दो

एक पल के वस्ल की यादें काफ़ी तो है प्रशान्त
वो उनके होकर भी नहीं है उनको ज़रा बता दो

– प्रशान्त

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