मेरे कमरे में धुंध भर गयी है
प्रेम-सूर्य कहाँ हो तुम?
अब और न छिपो मुझसे
मुझे कुछ दिखाई नहीं देता,
मैं कब तक चलूँगा अंदाज़े से
इन पथरीली राहों पर
अंधेरा चुभता है बहुत
अब मेरे दिल को;
दूर ही सही आकाश में आओ तो
अपने नैनों की चमक दिखलाओ तो,
तुम्हारी किरणों को छूकर मान लूँगा
तुम मेरे पास हो!
इस ज़मीन पर चाहे मिलो न तुम
पर याद रखना,
सूरज सागर में ही डूबता है
और मेरा नाम “प्रशान्त” है!
– प्रशान्त
\”प्रेम-सूर्य\”302 न.कमरे में है।😋
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