दीदी

बचपन में
स्कूल से लौटते हुये
एक छोटा सा था पार्क
दीदी मुझे वहाँ झुलाया करती थी।

एक अकेला बचपन
न थी जिसमें कुछ अनबन
बैग मेरा लेकर मुझसे
दीदी मुझे झुलाया करती थी।

ऐसा लगता था मैं
उड़ जाऊँगा सबसे दूर
जब हँसते-हँसते ज़ोर लगाकर
दीदी मुझे झुलाया करती थी।

कुछ लिख देता था मैं
जो समझ न पाती वो
वो सब बुलवाती थी मुझसे जब
दीदी मुझे झुलाया करती थी।

वो शहर की चौड़ी सड़कों पे
दिल छोटा जब हो जाता था
आज़ाद मुझे कर देती थी जब
दीदी मुझे झुलाया करती थी।

क्यों मिलना ही होता है
जब एक दिन सबको जाना है?
वो याद पुरानी आती है जब
दीदी मुझे झुलाया करती थी।

जो प्यार तुम्हारा मुझ पर है
और जितनी भी है सब यादें
वापस आ जायेगा बन्द आंखों में जो
दीदी मुझे झुलाया करती थी।

जितनी तुम हो मुझ में
उतनी ही मैं हूँ तुम में
बस याद रहे वो दिन दीदी
जब तुम मुझे झुलाया करती थी!

-प्रशान्त

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