जब कभी उकता जाना खुद से
तो पढ़ी हुयी किताब बंद कर देना
जब कभी ऊब जाना सब से
जिनसे मिल चुके उनसे न मिलना
जब कभी थक जाना चलने से
चले हुए रास्तों पर फिर न चलना
बात ये है कि,
तुम्हारी किताबें
तुम्हारे लोग
तुम्हारे रास्ते
अब बेमायने हो गए हैं।
और जब तक नहीं समझोगे ये तुम
तुम्हारी किताबें
तुम्हारे लोग और
तुम्हारे रास्ते
तुम्हें बेवकूफ़ बनाते रहेंगे।
समझना होगा तुम्हें भी
थोडा बदलना होगा तुम्हे भी,
क्यों भूल जाते हो तुम
आज नदियाँ भी खुल के बहने को
अदालत की मोहताज़ हैं!
सब बदल चुका है
प्रेम से लेकर न्याय तक
सब बदल चुका है,
तुम्हें बदलना नहीं है
तो करना होगा ‘एडजस्ट’ ;
याद रखो दोस्त!
पुरानी शराब महंगी होती जाती है, पर
पुराना इंसान सस्ते में भुलाया जाता है।
-प्रशांत