कस्टर्ड

पागल से लगने वाले विक्की ने अपने हिस्से का कस्टर्ड सामने खेल रही छोटी बच्ची को दे दिया।

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विक्की भावी अफसरों के बीच रहने वाला एक युवा कर्मचारी है। अपने काम से ज़्यादा वो अपने मुँहफट और पागल अंदाज़ के लिए प्रसिद्ध है। बीच-बीच में अधकचरी अंग्रेजी में बोले गये उसके कुछ वाक्य सभी का मनोरंजन करते हैं। पर आखिर विक्की कौन है? वो जैसा है वैसा क्यों है कोई नहीं जानता। अचानक गूढ़ बातें करने वाला विक्की किसी के भी ज़ोर से डांटने पर दुबक सा जाता है। 
“गुड मार्निंग भैया,” रोज़ की तरह विक्की ने अपने सबसे प्रिय आलोक भैया को सुबह ही कहा। 
आलोक भैया विक्की की उस माँ के सामान हैं, जो बच्चे की सारी गलतियाँ छुपा कर उसे बाकी बड़ों की डाँट से बचा लेती हैं। आलोक भैया से बचकानी सी हरकत करने के बाद विक्की ने अपना काम करना शुरू किया। 
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“आज दोपहर के खाने में कस्टर्ड है,” हर दूसरे आदमी को ये बताता हुआ विक्की दोपहर तक काम करता रहा। चेहरे पर एक गजब सा उत्साह लिये विक्की आलोक भैया से जुगाड़ भी लगाता रहा कि उसे दो बार कस्टर्ड मिल जाये। एक छोटी सी चीज़ कब जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है, यह ऐसे मौकों पर ही पता लगता है। 
आखिर विक्की खाने की लाइन में लग ही गया। 
नहा धो कर, गोरे होने वाली क्रीम लगाये विक्की से किसी ने पूछा- “और विक्की, क्या हाल है?”
मदमस्त विक्की ने अपना जाना-पहचाना जवाब दिया- “आई डोन्ट नो यार, इट्स माई ओके!” लाइन में खड़ा हर व्यक्ति उसका जवाब सुन कर हँस पड़ा। 
अपनी बारी आते ही विक्की ने गिलास में थोड़ा सा और कस्टर्ड डलवाया और अपनी थाली के साथ दालान में लगे पेड़ के नीचे आकर बैठ गया। 
इतने में उसे सामने खेल रही बच्ची की आवाज़ सुनाई दी “बोल मेरी मछली कितना पानी?” विक्की वहीँ से चिल्लाया, “इत्ता पानी!” अजीब सी बच्चों जैसी भंगिमा बनाये हुये विक्की के अंदर बचपना और लाड जैसे हिलोरने लगा। 
इसी प्रेममय आवेग में विक्की ने दिन भर से संजोये हुये अपने कस्टर्ड के ग्लास को उस बच्ची को दे दिया। बच्ची के चेहरे की चमक देखने लायक थी। इस भरी गर्मी में उसे जैसे अमृत मिल गया हो। ऐसा अमृत, जो शायद उसके गरीब माता-पिता पूरे मौसम में ना पिला पाते, वो उसे सहज ही मिल जायेगा, ऐसा उसने सोचा ही नहीं था। 
विक्की ने बच्ची से पूछा, “बोल मेरी मछली कितना पानी?”
गाढ़े कस्टर्ड से बनी हुयी मूंछ से सजे हुए मुँह से बच्ची ने उछलते हुए जवाब दिया, “इत्ता पानी!”
बच्ची का सिर प्यार से सहलाते हुये विक्की वापिस आ गया। फिर से ड्यूटी का समय हो गया था और खाना अभी तक नहीं खाया था। अब तो जैसे भूख भी ख़त्म सी हो गयी थी। 
विक्की ने फिर से उस पेड़ के नीचे आ कर अब तक ठंडी हो चुकी रोटी को अनमने तरीके से चबाना शुरू कर दिया। उस मीठे कस्टर्ड ने उसकी कई कड़वी यादों को फिर से जीवित कर दिया। 
उसके ज़्यादा न पढ़े हुये दिमाग ने अंदर ही अंदर उसे कोसना शुरू कर दिया, “विक्की, अगर तू ऐसा न होता तो आज तेरा भी ऐसा एक परिवार होता।” उसके आँसू उसके चेहरे में ही खो गये। जल्दी से पानी पीते हुए विक्की ने खाना किसी तरह निगला और जाने लगा। 
पीछे से आलोक भैया ने कस्टर्ड के एक्स्ट्रा गिलास को हाथ में लिये हुए उसे आवाज़ लगायी। 
विक्की को कुछ सुनाई नहीं दिया। उसके कानों में आज सिर्फ एक आवाज़ गूँज रही है, “बोल मेरी मछली कितना पानी?”
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– प्रशान्त 

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