सफल लोगों का कहना है
पीछे मत देखो
आज में जियो
आज में ही तुम्हारा कल है;
पर, प्रेमी जीव क्या करे
प्रेम बंध नहीं पाता सीमाओं में
भूत,वर्तमान और भविष्य की,
न ही समझ पाता है
जीवन के सत्य उस आधुनिक भाषा में
जो उसने कभी पढ़ी ही नहीं।
स्वयं को समझने के प्रयास में
प्रेमी जीव ने उठाये
कुछ पुराने नोट्स,जिनमें
सधे हुये अक्षरों के बीच
खिंची थी,
प्रेमिका के हाथों कुछ आड़ी-तिरछी रेखायें
जैसे अर्थहीन रेखाएं प्रेमी के हाथों की,
अंतर बस इतना था
नोट्स सुंदर थे
हाथ असुंदर।
यही अंतर है
पुरुष और स्त्री में,
स्त्री सदैव सुंदर है
जीवन की हर निरर्थकता में
असुंदर है पुरुष
जीवन की हर सार्थकता में भी।
काश! प्रेमी पुरुष निकल पाता
घर के बाहर लगी नाम की तख्तियों से
पहुँच पाता प्रेम के कारखानों में
जिन पर स्त्रीवादी विमर्शों ने
ताला लगा रखा है,
पुराने नोट्स के पन्ने चिल्ला रहे हैं
हर उस सिद्धांत पर
जो उन पर खिंची आड़ी-तिरछी रेखाओं को
नकारता है।
आख़िर बंद ही कर दिये नोट्स
प्रेमी मनुष्य ने
ये समझकर,कि
व्यवहारिक जीवन में नहीं स्थान
उसके अव्यवहारिक प्रेम का,
उसे हँसाना नहीं आता
उसे घुमाना नहीं आता
उसे जताना नहीं आता,
उसे बोलना भी नहीं आता,
आता है तो सिर्फ़ प्रेम
जिसकी मूक अभिव्यक्ति मायने नहीं रखती।
– प्रशान्त