आधार

क्या है मेरी रचना का आधार?
वो एक बिंदु
जिससे निकला सारा विश्व,
या मेरा कर्म
जो मिला बदल के बार बार,
या फिर वो अधूरा प्रेम
जो मिला नहीं हर बार!

जो भी हो
आधार होना चाहिये;
टिक पाती है
बिना नींव की इमारत
तभी तक
जब तक पड़ता नहीं भार,
भारी हो जाता है जीवन
अकर्मण्यता-जनित असफलता से,
इसलिए जीवन का
आधार होना चाहिये।

-प्रशान्त

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