प्रदूषण

पार्टिकुलेट मैटर 2.5
बढ़ गये हैं
हवा की तरह
मेरे जीवन में भी;
शिथिल हो रहे हैं मेरे स्वप्न
मेरे फेफड़ों जैसे
काश! रोक पाता
इन्हें कोई मास्क।

भावुक मनुष्य नहीं रोक पाता
अपनी क़िस्मत
यादों और आदत को;
ये भी एक प्रदूषण ही है
जो ला देता है बिन चुभे
खुली आंखों में आँसू
बंद में निराशा।

बचपन में,
नानी के घर
नहीं था कोई प्रदूषण
और तब,
ना आते थे आँखों में आँसू
न ही रूकती थी कभी
मेरी साँस।

-प्रशान्त

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