मेरा जो कुछ भी मुझ में था
हो गयी उसकी
आज असमय मृत्यु।
ये उसी दिन तय हो गया था
जब पहली बार मैंने
कुछ अलग करने को सोचा था।
मेरे सपने बन गये लावारिस लाश
जो गंगा में बह कर
किसी बाँध की जाली में फंस जाती है।
कितना लड़ेगा कोई और आखिर कब तक
किस्मत कहीं दिख जाती
तो सपनों की तरह उसे भी मार देता।
हाँ, मैं पापी हूँ
क्योंकि मैंने आज के हिसाब से
अब तक जीना नहीं सीखा।
हाँ, मैं आलसी हूँ
क्योंकि मेरा चरित्र,ज्ञान
किताबों तक ही नहीं सिमटा।
हाँ, मैं इंसान हूँ
क्योंकि मैंने सपने देखे और
प्रत्याशा की प्रेम की।
पर आज मैं थक हार कर मर गया
जो बचा है
वो सब कुछ है, मेरे सिवा।
मर ही जाता है वो
जो सही समय पर
सही काम नहीं करता।
-प्रशान्त