फाल्गुनी दोपहर

फाल्गुन की एक दोपहर वो भी थी
जब तुम मेरे पास थी,
चमकता चेहरा
आँखों तक मुस्कान,
तुमने पहनी थी
हमारे प्यार की लाल चूड़ियाँ
और कुछ भी नहीं;
आज तुम नहीं हो, और
चाहे जो भी हो मौसम
मेरा जीवन,
अब जेठ की सुलगती दोपहरी है!

-प्रशान्त

Leave a comment