जो तड़प के आख़िर टूट ही जाये
हो इश्क़ भला क्यों ऐसा हो
जो अपनी आग ही सह न पाये
हो इश्क़ भला क्यों ऐसा हो
साथ कदम जो चल न पाये
हो इश्क़ भला क्यों ऐसा हो
भवरों में भी जो डूब न पाये
हो इश्क़ भला तो ऐसा हो
तासीर कभी न बुझने पाये
हो इश्क़ भला तो ऐसा हो
जीने मरने में जो बंध न पाये
हो इश्क़ भला तो ऐसा हो
–प्रशान्त