क्या बुरी है वो औरत तुमसे?
क्यों उसे सब वेश्या कहते हैं?
वीभत्स तो तुम भी उतनी हो
जितनी कि वो है,
पर अंतर है कुछ
वो वेश्या अपनी मर्ज़ी से नहीं
तुम चरित्रहीन अपनी मर्ज़ी से हो।
तुम उतारती हो कपड़े बंद कमरों में
करने को सिद्ध अपने स्वार्थ
वो दिखाती है बदन बाज़ारों में
जीने के लिये,
तुम्हारा काम बुरा नहीं क्योंकि
तुम्हारे पास माँ-बाप का दिया निवाला है
वो फ़िर बुरी क्यों है?
उसका तो पेट और दिल, दोनों खाली है।
उसका प्रेम सच्चा है
चाहे जिसके प्रति
तुम्हारी हर बात आडम्बर है
चाहे जिसके भी प्रति,
है नग्न मात्र तन उसका
साधन सुख का है क्षणिक
पर निर्लज्ज है तुम्हारा मन
तुम्हारा दिया घाव पीड़ित करता आजीवन।
यह जीवन का चक्र मगर
जब रुकेगा एक दिन कभी
जब सब होते हुये भी
तुम होगी वहाँ जहाँ आज वो है
उसी दिन वो बनेगी,
मूर्ति मेरे मंदिर की पावन
हड़प्पा की उस स्त्री की तरह
जब स्त्री मात्र शरीर नहीं
मन भी हुआ करती थी।
-प्रशान्त