मैं पुराना ही अच्छा था शायद

मैं पुराना ही अच्छा था शायद
तब कोई भी बात मुझे
परेशान  नहीं करती थी,
और अब,
सफ़ेद शर्ट पर थोड़ा सा छींटा
कर देता है परेशान मुझे।

मैं पुराना ही अच्छा था शायद
तब न कोई मुंसिफ़ था और
न ही कोई वक़ील,
और अब,
एक छोटी सी बात भी
बड़ी लम्बी बहस बन जाती है।

मैं पुराना ही अच्छा था शायद
तब बिना बात हँसी भी
ना अटपटी लगती थी,
और अब,
आती हुयी हँसी भी
दब जाती है मुझमें कहीं।

मैं पुराना ही अच्छा था शायद
तब सीमित थे मायने प्रेम के
बस अपने घर तक ही,
और अब,
बड़ा सा प्रेम टूटते-बंटते
खो जाता है यूँ ही कहीं।

-प्रशान्त

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