बड़ी दूर हमारी बात चली

 अल-सुबह हमारी रात चली
बड़ी दूर हमारी बात चली

देख गेसू के निशाँ तकिये पर
आँखों से बरसात चली

एक कतरा तुम्हारी साँसों का
मेरी यादों की बारात चली

महक दिल पर तुम्हारी बातों की
फिर कोई न मेरी बात चली

वो उछला तुम्हारा जो किस्सा
मेरी न कोई बात चली

भर के रखे यादों के गुच्छे मैंने
घर तेरे न मेरी कोई सौगात चली

तुम बढ़ कर आगे पीछे रह जाती हो
एक जगह मेरी सब कायनात चली

रिश्तों का जमघट फिर भी कितनी अकेली
तन्हाई  में मेरी जश्न की पूरी रात चली

-प्रशान्त 

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