मैं शांत हूँ आज

मैं शांत हूँ आज 

पर थका नहीं हूँ
मेरा बिस्तर पर लेटना 
मेरी कमज़ोरी नहीं
मेरी मजबूरी है,
क्योंकि कोई और बहाना 
मिलता नहीं 
थके दिमाग को 
आराम देने का। 
आँखें आख़िरी बार 
बंद की हैं मैंने,
आराम के साथ
खुद को पहचान सकूँ जिससे,
खोलूँगा जब इस बार 
वे बंद नहीं होंगी फिर 
कम से कम तब तक
जब तक भ्रम 
जीने का रहेगा।
-प्रशान्त   

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