उकता गयी है अब रात भी
मेरे देर तक जागने से
अब चली जाती है जल्दी ही
छोड़ मुझे सहर के साथ
कोसता है मुझ ही को
सोता हुआ आफताब
कि मेरी बेचैनी
उसकी मोहब्बत में ख़लल देती है
नहीं समझता वो मेरी मजबूरी
है नहीं मेरे पास कहकशां उसकी तरह
नहीं आज़ाद मैं चमकता
अब्र में उसकी तरह
मैं वो आवारा हूँ
जो ख़ुद में ही कैद रहता हूँ
मेरे देर तक जागने से
अब चली जाती है जल्दी ही
छोड़ मुझे सहर के साथ
कोसता है मुझ ही को
सोता हुआ आफताब
कि मेरी बेचैनी
उसकी मोहब्बत में ख़लल देती है
नहीं समझता वो मेरी मजबूरी
है नहीं मेरे पास कहकशां उसकी तरह
नहीं आज़ाद मैं चमकता
अब्र में उसकी तरह
मैं वो आवारा हूँ
जो ख़ुद में ही कैद रहता हूँ
– अशांत