जब कभी मन ऊबे
तो उस पुराने पार्क में आइये
जिसमें उस पुरानी दोपहर का
राज़ आज भी ताज़ा है
बहुतों ने छुआ होगा उस बड़े पत्थर को
पर आपके हाथों का एहसास
आज भी ताज़ा है
प्यार कब बासी होता है!
उनके साथ नहीं तो अकेले ही सही
फिर छुप कर बैठिये, उनका अंदाज़-ए-इकरार
आज भी ताज़ा है
चमकती हँसी के लिबास के पीछे
अन्दर फीके हो बैठें वो किसी के भी संग
हमारी आगाज़ और अंदाज़ का चटख रंग
आज भी ताज़ा है
तो उस पुराने पार्क में आइये
जिसमें उस पुरानी दोपहर का
राज़ आज भी ताज़ा है
बहुतों ने छुआ होगा उस बड़े पत्थर को
पर आपके हाथों का एहसास
आज भी ताज़ा है
प्यार कब बासी होता है!
उनके साथ नहीं तो अकेले ही सही
फिर छुप कर बैठिये, उनका अंदाज़-ए-इकरार
आज भी ताज़ा है
चमकती हँसी के लिबास के पीछे
अन्दर फीके हो बैठें वो किसी के भी संग
हमारी आगाज़ और अंदाज़ का चटख रंग
आज भी ताज़ा है
-अशांत