फिर भी माँ मुझसे बात करती है

मैं कितना बुरा हूँ
फिर भी माँ मुझसे बात करती है,

जिनके कारण लड़ा था मैं तुमसे
अपना असली रंग दिखा गए
पर तुम आज भी रंगी हुई हो
ममता के अमिट रंग में,
आज भी जब सब दावतों में
मज़े लेते हैं 
तुम्हे मेरी
एक रोटी कम खाने
की बहुत चिंता है,
रात में मेरे कमरे की बत्ती
जब देर तक जलती है
और मैं किताब खोल कर
जब चिंता में डूबा रहता हूँ
अकेला, अशांत
तब झांकती हो तुम
दरवाज़े से ऐसे
मुझे पता भी नहीं चलता
और थोड़ी देर में
पानी पिलाने के बहाने
मेरे पास आ बैठती हो,
माँ,ऐसा कौन सा जादू सीखा है तुमने
मैं अपने आँसूं तुमसे ना छुपा पाता हूँ
लाख बनता हूँ होशियार
पर बन बुद्धू
तुम्हारी गोद में ही सिर छुपाता हूँ,
तुम भी क्या करोगी
तुम भी ऐसी हो
और हमेशा ऐसी ही रहना
क्योंकि तुम ही हो
आखिरी वो कड़ी
जिसने माँ के प्यार को बाँधा है,
नहीं तो आज की आज़ाद
विकसित पीढ़ी ने
नाम विकास के
माँ,तुम्हारे प्यार के बंधन को भी
तोड़ डाला है
दौड़ चुकी है आज इतना आगे
माँ,तुम्हे बहुत पीछे छोड़ डाला है,

आज की नव-वल्लरियाँ
शायद कभी तुम सी ना हो
क्योंकि उन्होंने पढ़ाई की है
विकास किया है,
तुम्हे पिछड़ा भी कह सकती हैं वो
पर तुम ना बदलना माँ
क्योंकि मैं जानता हूँ
तुमने भी पढ़ी हैं किताबें 
और सबसे बढ़कर
पढ़ा है,मेरे दिल को,
मेरी चिंता के पीछे
तुम्हारा नारीवाद नहीं
बल्कि तुम्हारा सहज ममत्व है
जो नहीं कैद हो सकता
खाके में किसी आडम्बरी विचारधारा के,

तुम जैसी हो वैसी ही रहना, माँ
क्योंकि तुमसा मजबूत कोई नहीं
क्योंकि तुमसे पावन कुछ भी नहीं
तुम ऐसी ही रहना
और देना हमेशा मुझको मौका कहने का
कि
मैं कितना बुरा हूँ
फिर भी माँ मुझसे बात करती है

-अशांत    
 

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