मैंने ही छेड़-छाड़ की
बाधित कर अविरल प्रवाह
मध्यम वर्गी विचारों का
जो थे उद्भवित मेरे मध्यम अस्तित्व से
चेष्टा की
करने को आलिंगन नवीन
समाहित थे अपरोक्ष जिनमें
कुछ सुविचार प्राचीन
प्रशंसित ना हुए मेरे प्रयास
क्योंकि थे प्रतिकूल
समाज की सामान्यतः संरचना के
जहाँ पर उच्चतम निर्णय
उच्चतर स्तर पर ही लिये जाते हैं
मध्यम अस्तित्व से मैंने
इस नियम की अवहेलना की थी
किया था प्रश्न,
क्या मध्यम वर्ग रह नैसर्गिक
हो नियम हीन कर नित नवीन
अवलंबित पर दृढ़ सशक्त
सर्जना नहीं कर सकता
नए जीवन की?
कुण्ठित .कुत्सित,अवसादग्रस्त
मैं रूक गया करने
गहन चिंतन प्रगतिशील
उन्माद ह्रदय में घुमड़ रहा
भीषण अत्यंत आतंरिक उद्वेलन
भौतिक जगत में करूँ विलास
या हो विरक्त करूँ हिम निवास
विकल्प अनन्य समस्त जटिल
जीवन पथ अत्यंत कुटिल
एक ओर प्रवाहित भावनायें प्रचंड
यथार्थ भेदता जिनको खंड-खंड
अंकित संबंधों की अमिट छाप
वचन सदैव रहा मेरा ईश
किन्तु प्राची की अरुणिम रेख पर
जीवन आस्था का हुआ हनन
अन्धकार इतना घोर प्रबल
ना भेद सके जिसे मार्तंड
मन की उस कोठरी में किन्तु’
पौरुष प्रखर प्रज्ज्वलित है
परीक्षा के इस काल में
आत्मा अशांत प्रशांत मुखरित है
मैं अब भी अपने पथ पर हूँ
क्षत विक्षत किन्तु जीवित
हूँ परिश्रान्त और क्लांत
ढूंढता मात्र आत्मिक एकांत
वो अमित ऊर्जा जो दमित है
जो प्रचुर काल से शमित है
ढूंढती साधन कर्म का
चाहती तोड़ना बंधन मर्म का
मैं करुंगा असंख्य प्रयास
जीवन के संग महारास
मैं बनूँगा ईंट नींव की
मैं ही कंगूरा बन इताराऊंगा
निष्काम कर्म द्वारा
करूंगा स्वयं का नवनिर्माण
शिथिल हैं जो अंग-अंग
भरूँगा उनमे नये प्राण
प्रेम द्वेष में रख सम भाव
मैं नए नियम बनाऊंगा
और मध्यम रूप में ही मोक्ष पाऊंगा
-अशांत
nice p… sir ji
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