हम वहां हो

आप मुस्कुराएँ और हम वहां हों
सारे आलम हो हुस्न के और हम वहां हों
नहीं तमन्ना हमें ताज महल की
छोटा सा घर हो आपका और हम वहां हों
पतझड़ में गिरी पत्ती फंसी हो बालो में
उसको हटाने के लिए बस हम वहां हों
किताबों से थक जब आँखें आराम करें
उन पर से चश्मा हटाने को हम वहां हों 
कुछ यूं खास रहे सोने का सफ़र
सुबह सिलवटें बनाने को हम वहां हों

कोई कितना भी कहे कि बुरे हो
तुम्हे सुकून भरोसा दिलाने को हम वहां हों

चाहे जितना हो कठिन ज़िन्दगी का सफ़र
हर शब हर सहर साथ आपके हम वहां हों 
अशांत 

6 thoughts on “हम वहां हो

  1. after a long while this piece of literary work is an excellent image of your work…. Brilliant and really commendable the way you write love poems with such a poetic innocence and candour…. I am just guessing that you yourself belives in romanticism of love rather than pomp and show of shallow feelings, u must have been keen observer and admirer of lovely innocence in your love… Really exquisite way of protraying your love… I just love this poem…

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  2. dear prashant , good work ,asha hain ki yeh silsila jari rahega , hum sab log shayad aisi hi anubhuti karte hoge , lekin hum me se shayad hi koi hogo jo is ehsaas ko kagaz par avtarit kar sake …..tum humare jaise hokar bhi humse alag ho

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  3. मेरी रचना ने आपको इतना छुआ ये सुन कर अच्छा लगा .. सिलसिला जारी रहेगा दोस्तों, बस आशा करता हूँ कि भौतिकवाद में भावनाओं का संचार बना रहे…. और इसमें आपके साथ की हमेशा तमन्ना रहेगी और भरोसा है की वो हमेशा मिलेगा भी

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  4. रजनीश भाई मेरा तो सिर्फ अंदाज़ रूमानी है पर आपके तो हर मिजाज़ में रूमानियत है जिसका मुकाबला करना मुश्किल ही नामुमकिन है!!

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  5. दिल जब रोता है तो ये क्यूँ होता है की हर चीज़ बुरी लगती है और सारा जहा यूँ सूना लगता है मनो दुनिया में कुछ हो ही न…. जिंदगी में हम इतनी चीज़ें चाहते चाहते है की बस जिसे हम चाहे वो हमें मिल जाए शायद लोग इसे खुदगर्जी कहें पर क्या सच में ये है????

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