मिट्टी की तलाश में

मन में जो आया बस उसे लिख रहा हूँ… पता नहीं ये कविता है कि नहीं!! ना ये पता है कि ये साहित्य किसी भी वर्ग में स्थान पाने के लायक भी है या नहीं.. परन्तु इसका पूर्ण विश्वास और संतोष है कि ये रचना एक सच्ची हार्दिक अनुभूति का प्रतिफल है!!

रात को चमकती लाइट में
कंक्रीट की सड़क पर
मै निकला हूँ एकांत में
मिट्टी की तलाश में
अपनी मिट्टी 
जिसे बचपन में 
ना जाने कहाँ छुपा दिया था
आज उसे फिर से चखने का मन है
अपनी मिट्टी मिल जाए
तो आँधियों में उड़ सकता हूँ
अपनी मिट्टी मिल जाए तो
तो बारिश में महक सकता हूँ
पर ना जाने कहाँ खो गई है वो 
कहीं माँ के आँचल में तो नहीं 
या पिताजी के बटुए में
या किसी दोस्त के पास 
कैसी निरर्थक आशा है
मुझमें भी उसे पाने की
किसको वक़्त है कि
मुझे बताएगा कहाँ छुपी है
और क्या पता
माँ ने आँचल में फंसी मिट्टी
पिता ने बटुए में फंसी गन्दगी
दोस्त ने मामूली सी धूल 
समझ कर झाड़ दिया हो उसे
आज उद्विग्न हूँ जिसके लिए 
ना जाने किसके पैरों तले
रौंदी गई हो बेरहमी से
दोष उनका भी नहीं लेकिन 
क्योंकि लापरवाही तो मेरी ही थी
इस जहान के रंगों को
समय से समझ नहीं पाया
सफ़ेद को सफ़ेद समझा
लाल को लाल 
थोड़ी चालाकी आती अगर
तो अपनी मिट्टी
का रंग बदल कर 
उसे बचा लेता 
और आज ये हालत न होती
मैं भी
जीवन को महसूस कर रहा होता
क्योंकि मिट्टी के बिना 
सब हवाई है
प्रेम, आदर्श, मित्रता, त्याग 
सब खोखले हैं
इसलिए निकल पड़ा हूँ
रात को चमकती लाइट में
कंक्रीट की सड़क पर
मिट्टी की तलाश में
बस डर ये है 
कंक्रीट पर गिरने से चोट लगेगी
अगर अपनी मिट्टी पर गिरता 
तो वो मुझे ज़रूर संभाल लेती….
अशांत 

3 thoughts on “मिट्टी की तलाश में

  1. Greetings, Thanks for sharing this link – but unfortunately it seems to be down? Does anybody here at prashantjustice.blogspot.com have a mirror or another source? Thanks,Thomas

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