पल भर में

पल भर में कभी कुछ दिनों के फासले में
कोई ख़ास बन जाता है
कल तक जो दबा सा था हसरत में
वही रूमानी एहसास बन जाता है
लिख लिख कर जिनकी याद में
मेरी कलम की स्याही सूख गई
जिनके जाने से मेरी बंधी हुई
सारी उम्मीदें टूट गईं
वो अपना ही जब अनजाना
सरेआम हुआ जाता है
तो किस अदालत में
रखूँ मैं अपनी दलील
हर मुंसिफ उनका दीवाना हुआ जाता है.

कुछ दिनों की ही तो बात है
मुझे इबादत का जूनून चढ़ आया था
खुदा को ढूँढने निकला मैं जो
तो तेरे दर पर कुछ पल ठहर आया था
एक वो दिन था और आज है
मेरी छूटी न तब से कोई नमाज़ है
वो सुर्ख लाल सा चेहरा तेरा
ये हया है तेरी या बेकद्री मेरी
कुछ समझ में नहीं आता
आखिर मेरी दुआओं का
कोई जवाब क्यों नहीं आता

अब किस अदालत में
रखूँ मैं अपनी दलील
हर मुंसिफ तेरा दीवाना हुआ जाता है.
मेरा इल्म था या महज़ धोखा था
तुने ही तो मुझे उस दिन रोका था
वो इकरार तेरा ही तो था
मोहब्बत कि उस शाम को
मेरा दिल ही गवाह है
उस पल की तस्वीर का
और कोई सबूत नहीं मेरे पास
तेरी उस तहरीर का
फिर भी आज तोड़ कर हर वादा तुम
मुझसे तक़रीर की आस रखते हो 
अब किस अदालत में
रखूँ मैं अपनी दलील
हर मुंसिफ तेरा दीवाना हुआ जाता है.
अशांत 

3 thoughts on “पल भर में

  1. What to say.. I'm speechless. U are the best writer who can show his true feelings.. Kuch decisions god pe chhodna chahiye.. Not going to write much.. All d best for ur upcoming life..

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  2. nice…u are still on and on just keep this…..abhivyakti hai musafiro ki kasti , kyunki dhoop me aksar mil jati hai chav…..likhte raho aisa….

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