ढूँढता रहा!!

बादलों में सूरज ढूँढता रहा
रास्तों में मील के पत्थर ढूँढता रहा
जिसकी ज़रूरत थी वो पास ही था
और मैं उसे कहाँ कहाँ ढूँढता रहा।

सामने रह कर भी ना नज़र आया
मैं यहीं था ना जाने वो कब आया
बाहें पकड़े बगल ही बैठा था
और मैं उसे कहाँ कहाँ ढूँढता रहा।

डूबे हुए सूरज में कुछ ऐसा डूबा रहा
दिन का उजाला ना कभी नज़र आया
वो मुझे हरदम देता रहा हौसला
और मैं उसे कहाँ कहाँ ढूँढता रहा।

उलझनों में उलझ गया कुछ इस कदर
नए रिश्ते न कुछ बना पाया
एक बेनाम सा जो था साथ में
ना जाने उसे कहाँ कहाँ ढूँढता रहा।

तू माने या ना माने ‘अशांत’
तू कातिल है अपनी ज़िन्दगी का
जो कभी तेरा था ही नहीं
उसे तू कहाँ कहाँ ढूँढता रहा।

अशांत

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