कसक दिल में उठती है
उँगलियाँ काँप जाती हैं
साँसे बेचैन होती है
बेखुदी खूब सताती है
ऐसा तब होता है जान
जब तुम्हारी याद आती है।
तेरे दर को मेरा सलाम जाता है
मेरे दिल से तुमको पैगाम जाता है
फिजाओं के एहसास रूमानी होता है
हर एक नज़ारा ख़ूबसूरत बन जाता है
ऐसा तब होता है जान
जब तुम्हारी याद आती है।
साँसे मेरी थम जाती हैं
ज़िन्दगी भी रुक जाती है
इश्क में तेरे इतना डूब जाता हूँ मैं
अपनी न कोई फ़िक्र रह जाती है
ऐसा तब होता है जान
जब तुम्हारी याद आती है।
तू औरों से बात करती है
मेरी आँखें पर तेरे लिए तरसती हैं
शायद वो तेरे अपने हैं
पर मेरे भी तो कुछ सपने हैं
ये सितम दे कर ना हमें आजमाया करो
हम क्या नही तुम्हारे अपने हैं?
ऐसा मई तब सोच जाता हूँ जान
जब तुम्हारी याद आती है।
अशांत