एक बार हँस दो ना

बहुत दिनों से दिल में उजाला नहीं हुआ
तुम आ कर भी कभी नहीं आयी
बहुत दिन हुये तुम्हें सुना नहीं
कुछ और नहीं तो बस नाम ले लो मेरा
भींच लो गोरे हाथों में मेरी साँवली उंगलियाँ
सफेद तिल में जैसे मिल जाता है गुड़
बहुत दिन से कुछ मीठा दोनों ने खाया नहीं
तुम्हारी गर्दन पर फूँक देनी है एक लक़ीर
जैसे चींटीयाँ कर रही हो गुदगुदियाँ
तुम्हारी आँखों को देखना है कुछ इस सलीके से
मेरा भूरा तुम्हारा काला मिलकर हो जाये कत्थई
हो सके तो गले लगा लो मुझको
माँ के बाद किसी ने नहीं सहलाया है मुझे।

और हो सके तो नैना पढ़ लो मुझको
मेरे शब्दों ने भी नहीं अपनाया है मुझे
तुम हँसती हो तो
तुम्हारे हल्के से खुले होंठ
थोड़ी सी सिकुड़ी नाक
छोटी हुयी काजल लगी आँख
होठों से सटा तिल
सब मुझसे बोलने लगते हैं
तुम्हें एकटक तो नहीं देख पाता मैं
पर नज़र नीची कर मुस्कुरा देता हूँ;
और हाँ, जब तुम हँसती
तो दाहिने पीछे के तरफ दिखता है
तुम्हारा दाँतों पर चढ़ा एक दाँत
लिखना चाहता हूँ उस पर मैं
अपनी ज़ुबाँ से तुम्हारा नाम
बहुत दिन हुये कुछ ढंग का लिखा नहीं।

पूर्ण समर्पण मेरा स्वीकार करो
सबको सब कहती हो
मुझको भी तुम प्यार करो,
अगर नहीं कर सकती कुछ
बस एक बार हँस दो ना; क्योंकि
बहुत दिनों से दिल में उजाला नहीं हुआ
तुम आ कर भी कभी नहीं आयी।

– अशान्त

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