राबता

तुम नहीं हो फ़ेहरिस्त में मेरे यारों की
यूँ ही नहीं मेरी पलकें आज भीगी हैं,
कोई तो राबता रहा होगा तुमसे
यूँ ही नहीं ज़मीं चाँद की भीगी है।

कुछ कह ही दो आज तुम हमसे
अर्से से कुछ मीठा नहीं सुना हमने,
अब बिखर जाओ तुम मेरी ज़िंदगी में
बरसों से कोई फूल नहीं चुना हमने।

तुम चले जाते हो मगर इस दिल का क्या
इंसान की तरह ये पैरहन बदल नहीं सकता,
फुरकत की तासीर होती ही है खारी
बहा हुआ आँसू पानी बन नहीं सकता।

ज़ाहिद बन बताते हो तरक़ीब-ए-हयात
कभी खुद चला करो उन रास्तों पर तुम,
किसे फ़िक्र है जिस्म की या हश्र की
कभी दिल से बात किया करो तो तुम।

ये नतीजा हमेशा से पता था तुम्हें अशान्त
फिर भी तिफ़्ल सा तुम ज़िद पर अड़े रहे,
तंग सड़कों पर चल सबके सपने बड़े हुये
बड़े बेशर्म तुम जहाँ थे वहीं खड़े रहे।

– अशान्त

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