तुम प्रेम हो
तुम हरसिंगार का फूल हो;
खिलते हो कुछ देर
पर जीवन महका जाते हो
रात तलक खिलते हो
सुबह ज़मीं बर्फ़ कर जाते हो,
बिन कर तुमको हाथों से
किया आंखों से आलिंगन
पूजा की थाली में रखा
आस्था का तुम निज आभूषण।
हमसफ़र हरसिंगार का
बन पाना बहुत ही मुश्किल है
कहना किसी को अपना
अपनाना बहुत ही मुश्किल है,
अविवेकी प्रेम हूँ मैं
तुम ओ हेनरी की आखिरी पत्ती हो
तुम भी प्रेम हो
तुम हरसिंगार का फूल हो।
– अशान्त