नहीं चुप चांदनी रात में,
मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ
बड़े शहर की बोलती रात में,
मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ
सड़क की दूधिया ट्यूबलाइट में; क्योंकि
चाँदनी कवियों ने पुरानी कर दी
क्यों छुपने दूँ मैं तुम्हारी सरल सुंदरता
और खुद तुमको
किसी कवि की कल्पना में?
तुम में पता नहीं क्या दिखायी देता है
शायद सब कुछ- हँसी, आँसू, सपने, अपने
शायद कुछ भी नहीं- बस तुम!
मैं लिखना चाहता हूँ तुमको
तुम्हारे ही शब्दों में,
न तुम उपमान हो
न तुम उपमेय हो
तुम वह निर्गुण हो
जिसे मैं सगुण देखना चाहता हूँ, इसलिये
मैं तुमसे चांदनी में नहीं
ट्यूबलाइट की रौशनी में मिलना चाहता हूँ।
वो जो उंगली से तुम्हारी गर्दन पर
लिखा था मैंने सालों पहले
तुमने मिटाया न हो तो
उसे पढ़ने का बहुत मन है,
जो तुमने सोचा तो बहुत
पर कभी गाया ही नहीं
उन बोलों वाले गीत
सुनने का बहुत मन है,
तुम्हारे लिये जो सीखी थी
बना कर वही कॉफी
उसे तुम्हारे हाथों से
पीने का बहुत मन है,
ये सच है कि बिना साथ
ज़िन्दगी चल ही रही है
जीना को कोई बेनाम रिश्ता
तेरे संग बहुत मन है,इसलिये
मैं तुमसे चांदनी में नहीं
ट्यूबलाइट की रौशनी में मिलना चाहता हूँ।
– अशान्त