अकेलापन

एक खाली मेज
तीन खाली कुर्सियाँ
एक अकेला अकेलापन-
दो कुर्सियाँ ही खाली थीं
पिछली बार
कहा था तुमने नहीं होगा
कभी कोई अकेला,
पर देखो न ऐसा क्यों है
पिछली बार
जिसने उलझाये थे तुम्हारे बाल
आज उसने बस टिशू पेपर उड़ाये
सच कहें? इन उड़ते काग़ज़ों में
उड़ता रोमांस भी था।

पिछली बार बड़ी मुश्किल से
छः पीले ग़ुलाबों के बीच
एक लाल ग़ुलाब वाला
गुलदस्ता बनवाया था,
क्योंकि पता था कहीं न कहीं
अगली बार देने होंगे पैसे
सिर्फ़ खाने के,
तुम्हारे आने-जाने के बीच
बस एक बात रही
एक अकेला अकेलापन।

हूक तो उठेगी दिल में
कोई आँसू न गिरेगा,
किसी का आना है अपने वश में
जाना है उसके वश में
आना है ज़्यादा ज़रूरी
क्योंकि जाना तो पहले से तय है,
कुछ नहीं तो एक दिन
इस शरीर को जाना ही है।

फिर रह जायेंगी,
एक मेज
चार खाली कुर्सियाँ
और एक अकेला अकेलापन।

– अशान्त

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