मुँह में दाँत नहीं हैं
रोटी भाग रही है
छत उड़ रही है
नींव डूब गयी है
बैंक पैसे निगल रहा है
आलस प्रखर है
शब्द खो गये हैं
हँसी सो गयी है
रूंदन जग रहा है
स्मृतियाँ आतातायी हैं
नींद विरक्त है
मन अनुरक्त है
प्रेम अनाथ है
तुम भी नहीं हो;
जीवन एक दुःस्वप्न है
एक तसल्ली है बस
जैसा भी है
एक स्वप्न है!
– प्रशान्त