प्रशस्त-प्रेम

प्रिय मित्र ऋचा और अंकित की विवाह की चौथी वर्षगाँठ के अवसर पर एक छोटा सा प्रयास-

कुछ यूँ सुंदर है प्यार तुम्हारा जैसे
बोगनवेलिया के रंग-बिरंगे फूल
कुछ यूँ पनपा है प्यार तुम्हारा जैसे
छोटी छत पर गमले में फूल,

है रंग-महक का ऐसा मेला
दोनों के आते सब सुंदर हो जाता है
है निश्छल ऐसी अभिव्यक्ति
बिन कहे समझ सब आ जाता है,

जितना ऋचा पढ़ी जाती हैं
हर हृदय पर अंकित होता है
हर्षित करती सबका जीवन
किरणें उदीषा की अपरम्पार,

हो साथ तुम्हारा अजर-अमर
हो सब बाधाओं से दूर
अनिश्चित इस जीवन में
हो निश्चित तुम्हारा प्रेम आधार

नहीं ज्ञात मुझे वेदों का सार 

वहाँ प्रेम रेखांकित है या नहीं?

किन्तु,दृश्यमान मुझे जीवन-पटल पर सरल 

“ऋचांकित” तुम्हारा प्यार!

– प्रशान्त

Leave a comment