वो परिंदा जो था मेरा आज देखो उड़ गया है
जितने अरमाँ थे हमारे साथ लेके उड़ गया है,
बेकरारी है अगर उसका बोलो क्या करें
साथ देता जो हमारा वो अकेला उड़ गया है।
जान लिया जिसको हमने उस से कैसी आरज़ू
बंद दिलों से होगी आख़िर उनसे कैसी गुफ़्तगू,
मुश्किलें है मगर उसका बोलो क्या करें
मिल न जायें जब तक वो चलती है ये जुस्तजू।
इश्क़ में टूटा नहीं तो फिर तुम्हारा दिल है क्या
मिल के फिर छूटा नहीं ऐसा साहिल भी है क्या,
ज़िन्दगी है मगर उसका बोलो क्या करें
रो कर हँसना न सिखाये वो जवानी फिर है क्या।
सूखना है हर शज़र को आज जो शादाब है
गालियाँ देंगे जो करते आज सब आदाब हैं
बदलेगा सब मगर उसका बोलो क्या करें
उजड़ेगा हर शहर जो आज तो आबाद है।
लोग जायेंगे पर पुरानी गलियाँ तो रहेंगी
बात न होगी उनकी यादें फिर भी रहेंगी
खुश हैं सब मगर उसका बोलो क्या करें
हँसते चेहरों पर आँसूं की लकीरें तो रहेंगी।
– प्रशान्त