ये प्रेम समर्पण मेरा तुम
नैना स्वीकार करो
सब सीमायें तोड़ कर
निर्बन्ध मुझे तुम प्यार करो
जो सुंदरता का मान तुम्हारा
मुझको रखना होगा
नित नयन से नयनों के तेरे
अमृत रस चखना होगा
जो सुगंध तुम्हारे प्रेम की
तुम्हारे स्वरों से आती है
मेरे नीरस जीवन को
बस वही सरस बनाती है
प्रेम एकता दो आत्माओं की
लघु-दीर्घ का मान नहीं
ये भावों का अटल संगम
इसमें अहं का मान नहीं
जिस दिवस “मैं” समाप्त हो
एकल “हम” बन जायेगा
जीवन सार्थक होगा अपना
जग में मन रम जायेगा।
– प्रशान्त