पास मेरे अब आओ राम
हृदय में रावण बैठा है
हृदय में मेरे आओ राम
काम करें कैसे निष्काम
हाथों में रावण रहता है
हाथ में मेरे आओ राम
प्रेम हमें सिखलाओ राम
द्वेष का रावण बैठा है
जीवन मधुर बनाओ राम
जीवन बना विकट संग्राम
हार का रावण बैठा है
मुझे जिताओ अब तो राम
फिर से आयी अंधेरी शाम
तम का रावण फैला है
सुबह सुहानी लाओ राम
बिगड़े सब जो बने थे काम
नियति में रावण बैठा है
आशा के तुम दीपक राम
थका है सब है नहीं विश्राम
अर्थ में रावण रहता है
समृद्धि-वर्षा करवाओ राम
कर्महीन नर का क्या काम
अकर्म का रावण बैठा है
कर्मशील बनवाओ राम
जीवन के दाता तुम राम
क्यों फिर रावण रहता है
मुक्ति-सुधा पिलाओ राम
हृदय में मेरे आओ राम….
– प्रशान्त