तुम साथ होते हो मेरे

कब साथ होते हैं दो लोग?
जब होते हैं हाथों में हाथ
या होती है बातों में बात?

तुम साथ होते हो मेरे
जब सोच लेती हूँ मैं उस पल को
जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था,
तुम्हारी पहली आवाज़
मुझे आज भी छू लेती है!

तुम साथ होते हो मेरे
जब तुम्हारा नाम आता है ज़ुबाँ पर
जब तुम चमकते हो मेरे फ़ोन पर,
तुम्हारे लिखे हुए संदेशे
मुझे यूँ ही हँसा देते हैं!

तुम साथ होते हो मेरे
जब थक जाती हैं मेरी यादें
जब याद आती है तुम्हारी मुलाकातें,
तुम्हारा पहला एहसास
मुझे आज भी सिहरा जाता है!

तुम साथ होते हो मेरे
जब याद आते हैं अग्नि के फेरे
जब दिये थे हमने वो सात वचन,
तुम्हारी आँखों की वो सच्चाई
मुझे आज भी विश्वास दिलाती हैं!

तुम साथ होते हो मेरे
जब तुम्हें छोड़ कर आती हूँ मैं
जब चुरा लेती हूँ तुम्हें भीगी पलकों से,
तुम्हारी आँखों के कोनों सी
मेरी आँखें भी भीग जाती हैं!

तुम साथ होते हो मेरे
जब मैं तुम्हें पाती हूँ खुद में
जब होता है मुझे अपने होने का एहसास,
तुम्हारी शान्त सी उपस्थिति
मेरा सम्बल बन जाती है।

तुम साथ होते हो मेरे
जब लिखा जाता है कुछ भी प्रेम-सा
जब बढ़ जाता मेरा स्वयं पर विश्वास,
तुम्हारी हर स्मृति-आकृति
मेरी सपनों की उड़ान बन जाती है।

तुम ऐसे ही साथ होते हो मेरे
तो बताओ फ़िर,
कब साथ होते हैं दो लोग?
जब होते हैं हाथों में हाथ
या होती है बातों में बात?

क्या परे नहीं इस लोक से
परस्पर समर्पण तुम्हारा मेरा?
जब कभी याद करो तुम मुझको
देखना बंद कर के अपने नयन
ये पाओगे, तुम साथ होते हो मेरे!

– प्रशान्त

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