सत्य

जाना ही सत्य है;
जन्म से लेकर प्रेम तक
लोग आते हैं
मात्र जाने के लिये।

फूल सूख जाता है खिल कर
पानी बह जाता है मिल कर
और समय के साथ
लिखा हुआ सब मिट जाता है।

तो सत्य क्या है?
क्या देखा है किसी ने?
वेदों की ऋचाओं में
या वासनाओं की पोटली में
सत्य, कहाँ है?

क्या जो नहीं दिखता
वो नहीं होता? पता नहीं!
पर, किसी का जाना दिखता है
होता है अनुभूत भी
कदाचित इसीलिये,
जाना ही सत्य है
अंतिम सत्य-मृत्यु की तरह।

-प्रशान्त

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