ऐ नदी

पहाड़ियाँ सुन्दर होती हैं
जल्दी नहीं बदलतीं,
पर कुछ अलग होती हैं
नदियाँ, वो एक जगह नहीं रुकतीं। 
बह चलो तुम भी 
समेटते वो सब जो मिले रास्ते में
तुम्हें मुड़ना भी होगा
कभी बदलना होगा रास्ता भी
पर जब तुम मिलोगी सागर से
तुम्हारे अस्तित्व का असली नमक
उसे और खारा कर देगा। 
नमक ज़रूरी होता है
खाने के लिये
जीने के लिए
स्वतंत्रता के लिए भी,
यूं ही नहीं बन जाता कोई गांधी, 
उसे सागर किनारे अपने हाथों से
बनाना पड़ता ही है नमक!
तुम्हारा हर अनुभव, हर सिद्धांत
स्वाद है उस नमक का
याद रखना, तुम्हारी यात्रा 
नमक के स्वाद का सबब है
ऐ नदी! तुम नहीं होती
तो नमक नमकीन नहीं होता। 
– प्रशान्त 

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