मैं देख न पाऊँ खुद को भी सब मेरे निशान मिटा दो
अब दर्द मेरा भी कुछ कम हो कोई मेरी याद मिटा दो
अब दर्द मेरा भी कुछ कम हो कोई मेरी याद मिटा दो
ये चेहरे पे मेरी जो झूठी मुस्कानों का पहरा है
तोड़ दो इसको बेरहमी से कोई मेरे आँसू बहा दो
कितना सोचेगा आशिक़ अपनी बर्बाद मोहब्बत को
मिट सकती हो दुनिया तो कोई इसको मिटा दो
हँसती आँखों से तोड़ने का ये कैसा अजीब चलन है
जज़्बात बसें न जिसमें कोई ऐसा दिल भी बना दो
ये रोज़ पुरानी कहानी क्यों चलती है मेरी नज़र में
सब बदल गये क़िरदार कोई ये अफसाना मिटा दो
ये जीवन है क्या बोलो बस यादों का ही तो महल है
मैं मरने का तालिब हूँ कोई मेरी याद मिटा दो
जब बचा नहीं है आँखों में मेरी थोड़ा सा पानी
ये जीना क्या जीना है कोई मेरी याद मिटा दो
-प्रशान्त