तो अच्छा रहता

ज़िन्दगी तो यूँ भी गुज़र ही जाती
हम थोड़ा मुस्कुरा पाते तो अच्छा रहता

वफ़ा ज़फ़ा वस्ल हिज़्र तो होते ही रहते
हम तुम्हारे हो पाते तो अच्छा रहता

जीते तुम मेरी तरह तो चोट लग ही जाती
हम दर्द कम कर पाते तो अच्छा रहता

तमन्ना जिसकी हो कहाँ है मिल पाता
हम बस तुम्हें पा जाते तो अच्छा रहता

जो सितारा है धुंधला सही चमकता तो है
हम भी अगर चमक पाते तो अच्छा रहता

सूरज निकलते ही रात तो डूब ही जाती
हम अल सुबह उठ पाते तो अच्छा रहता

छू कर भी हमको लोग हैं भूल जाते
हम तुम सा बन पाते तो अच्छा रहता

-प्रशान्त

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