कटते रहोगे तुम

जब अपने ही बदल जायें तो क्या कर लोगे तुम
चलने लगेगी जब ज़मीन कितना ठहर लोगे तुम

रिश्ते, इश्क़,दोस्ती, सब जज़्बा-ए-दिल हैं
दिल ही बदल जायें तो क्या कर लोगे तुम

कम थे ग़म क्या पहले से ज़िन्दगी में तुम्हारी
और ज़्यादा ग़म से क्या ख़ुदा बन लोगे तुम

क्यों खोलते हो दिल को बोलते हो रूह से
अकेले इस जहाँ को क्या बदल लोगे तुम

वो मीठी बातें मसरूफियत में दब गयीं
समझे थे क्यों उनको अपना कर लोगे तुम

डूबते ही सूरज सब हँसते हैं अब तुम पर
किस दम से अँधेरे में उजाला कर लोगे तुम

पैसा सुकून तुमको दे पायेगा न जब तक
अपने ही हसीन ख़न्जर से कटते रहोगे तुम

-प्रशान्त 

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