मेरा संघर्ष
उतना ही सुंदर है
जितनी मेरी पहली प्रेमिका।
इतना सा अंतर बस दोनों में
वो वक़्त के साथ ढल गयी
ये वक़्त के साथ निखर गया।
सुनसान रात में जलता लैंप,
मेरी किताबों की ओट में
कोई खड़ा है।
प्रेम,
स्वप्न, या फिर
मेरा सतत संघर्ष?
अब न तो नींद आती है
न ही जगने में मज़ा
क्यों? ये भी नहीं पता!
हफ़्तों की चुप्पी
जब भी टूटती है
मैं बचकाना लगता हूँ।
मुझे संभालती है तो बस
एक आशा की डोर;
संघर्ष में सहारा ज़रूरी है।
-प्रशान्त