मिल भी जाये

मिल भी जाये कुछ यूँ ज़िन्दगी मुझ से
न वो न मैं कभी एक दुसरे से परेशान हों

यूँ देखें मुझे वो छुपी नज़र से
मेरे बस वो ही एक कद्रदान हों

देख कर उन्हें नहीं गिरते लफ़्ज़ लबों से
उनको पढ़ लें वो तो थोड़ी पहचान हो

मोहब्बत नहीं बढ़ती सिर्फ मुलाकातों से
काश उनके दिल में हमारा मकान हो

न ऊबे मन किसी भी लम्बे सफ़र से
मिले हमसफ़र ऐसा कभी न थकान हो

-प्रशान्त

Leave a comment